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ज़िन्दगी गुलज़ार है

०९ नवंबर – कशफ़

मेरी शादी हो गयी है और ज़िन्दगी का एक नया सफ़र शुरू हो गया है. गुज़रे हुए तीन दिन मेरी ज़िन्दगी के सबसे ख़ूबसूरत दिन थे. मैं जानती हूँ आने वाला हर दिन मेरे लिए सब अच्छी ख़बर नहीं लायेगा. बाद में जो होना है, वो तो होता रहेगा, मगर मैं ज़िन्दगी के कम-अज़-कम ये चंद दिन ख़ुशफहमियों के सहारे गुज़ारना चाहती हूँ. मैं शादी के दिन बहुत परेशान थी. कोई भी चीज़ मुझे अच्छी नहीं लग रही थी.

जब ज़ारून की तरफ़ से आने वाले जेवरात और उरूसी जोड़ा (दुल्हन का जोड़ा) कमरे में लाये गए, तो मेरा दिल चाहा मैं उन्हें आग लगा दूं. मेरी कजिन्स और फ्रेंड्स उन चीज़ों की तारीफ़ें कर रही थीं. उनके नज़दीक मैं ख़ुशकिस्मत थी और वो मेरी कैफ़ियत से बेख़बर उन चीज़ों पर रश्क (ईर्ष्या) कर रही थी और मैं ये सोच रही थी कि वो मेंरे साथ क्या सलूक करेगा. वो सब चीज़ें उस वक़्त मुझे फांसी के फंदे की तरह लग रही थी.

जब मुझे ज़ारून के कमरे में पहुँचाया गया, तो मुझे यूं लग रहा था, जैसे मेरा नर्वस ब्रेकडाउन हो जायेगा. वो कमरे में आने के बाद कुछ देर तक मुझे नज़र-अंदाज़ करता रहा और मेरे इस खौफ़ को मुस्तहकम (पक्का, मजबूत) करता रहा कि मेरे सारे हादिसात (डर) ठीक थे, मगर फिर क्या हुआ, कुछ भी तो नहीं. उसका रवैया बिल्कुल नॉर्मल था.

उसने मुझसे पूछा था, “क्या तुम मुझसे मोहबबत करोगी?”

मैंने “हाँ” कहा था और उसकी आँखों में उभरने वाली चमक देख कर हैरान रह गयी थी. मैं नहीं कह सकती कि वो मुहब्बत नहीं थी. शायद वो वाकई मुझसे मुहब्बत करता था.

सुबह मैं बहुत जल्दी उठ गयी थी. जब मैंने आँखें खोली, तो उस वक़्त मैं उठ कर अपने इर्द-गिर्द नज़र दौड़ाने लगी थी और तब मुझे रात की सारे बातें याद आने लगी. ज़ारून मेरे बाएं जानिब पड़े पुर-सुकूँ अंदाज़ में सो रहा था. मैं कुछ देर उसे देखती रही. कमरे में फैली हुई हल्की सी रोशनी में वो बहुत अच्छा लग रहा था. फिर मैं नहाने के बाद टेरिस पर चली गुई. उस वक़्त हल्का अंधेरा था और आसमान पर काफी बादल छाये हुए थे. मुझे बहुत सर्दी महसूस हुई और मैं वापस अंदर आ गयी. फिर मैं बेडरूम की खिड़की से नीचे लॉन को देखती रही, जो उस वक़्त बहुत अजीब सा नज़र आ रहा था. मुझसे पता नहीं चला, वो कब बेदार (सोकर उठा) हुआ. अगर तब भी उसका रवैया मेरे साथ बहुत अच्छा रहा.

खौफ़ की वो कैफ़ियत, जो पिछले कई दिनों से मुझे अपनी हिसार (घेरे) में लिए हुए थी, तब तक गायब हो चुकी थी.

रात को वालिमा (विवाह भोज) में मैं बहुत मुतमइन (संतुष्ट) थी. मेरी कजिन ने कहा था, “तुम कल की निस्बत आज ज्यादा ख़ूबसूरत लग रही हो.”

लेकिन मैं जानती थी कि तब चूंकि मैं खौफज़दा नहीं थी. इसलिए फ्रेश लग रही थी. डिनर के बाद एक म्यूजिक प्रोग्राम पेश किया गया था और तकरीबन २ बजे हम होटल से वापस आये थे. सारा मेरे साथ थी और ज़ारून मेहमानों को रुखसत करने के लिए होटल में ही ठहर गया था. वापस आने के बाद सारा ने मेरे सारी शॉपिंग की. वो बहुत अच्छी है. मेरे कमरे को उसी ने सेट किया था और वो ही सब चीज़ें समेटती रही. पैकिंग करवाने के बाद वो मेरे साथ बैठी गपशप करती रही, तब ही ज़ारून आ गया था. सारा के जाने के बाद ज़ारून ने कहा था.

मेरी फॅमिली में, जो सबसे ज्यादा मेरे करीब है, वो मेरी बहन है. ये जो इस कदर तुम्हारे आगे-पीछे फिर रही है, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि तुम मेरी पसंद हो और उसे मुझसे वाबस्ता (जुड़ा हुआ) हर चीज़ से मुहब्बत है.

उसके लहज़े में सारा के लिए मुहब्बत नुमाया थी.

तुम बहुत अच्छी लग रही हो.”

उसने एकदम बात बदल दी थी. मुझे पहली बार उसका लहज़ा अजनबी नहीं लगा. उसके हाथों की गर्मी, उसका लम्स, उसकी तवज्जो मुझे अच्छी लग रही थी, क्योंकि वो मेरी ज़िन्दगी में आने वाला पहला मर्द था. वो मेरे हाथों को चूम रहा था और मैं सोच रही थी कि ये मुहब्बत कोई ख्वाब है या हकीकत.

आज सुबह आसमां और अज़हर के साथ मैं घर आ गयी थी. ज़ारून पहले ही मुझ बता चुका था कि उनके फैमिली में ससुराल जाकर रहने की कोई रस्म नहीं है, इसलिये वो मेरे साथ नहीं आ पायेगा. मैंने इसरार नहीं किया था.

कुछ देर पहले ज़ारून ने मुझे फोन किया था.

तुम कैसे हो?” मेरे हलो कहते ही उसने पूछा था.

मैं ठीक हूँ.” मैंने उससे कहा था. वो बहुत देर तक मुझसे बातें करता रहा. फिर मैंने उसे फोन बंद करने पर आमादा किया था, वरना वो तो शायद सारी रात ही बातें करता रहता. मैं उसके घर सिर्फ़ २ दिन रही हूँ, लेकिन आज मुझे अपना कमरा अजनबी लग रहा था. शायद शादी के बाद सबके साथ ऐसा ही होता है और मैं कोई दूसरों से मुख्तलिफ़ (अलग) नहीं हूँ.  

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3 Comments

Radhika

09-Mar-2023 04:20 PM

Nice

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Alka jain

09-Mar-2023 04:08 PM

बेहतरीन

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Dr. Arpita Agrawal

20-Mar-2022 11:29 PM

बहुत खूब 👌👌

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